Tuesday, July 28, 2020

अपनी शक्ति पहचानो तुम्हें स्वयं अपना रास्ता बनाना होगा. क्यों तुम लड़ती रहीं , जूझती रहीं ,चाहती रहीं ,बदलना मानसिकता औरों की। क्या फर्क है तुममें और उनमें मत जूझो न लड़ो ,न अपना समय बर्बाद करो। न बदलो किसी की मानसिकता ,उनकी धारणा ,हाँ बदलो अपनी वैचारिकता। बदलो अपने को शिक्षा से ,चिंतन मनन से ,कवच आत्म निर्भरता के स्वबल से। नारी होने के अहसास से ,कमजोर नहीं ,अधूरी नहीं प्रचंड शक्ति बनी रहो तुम. सम्पूर्णता पाओ अपने आत्म मंथन से,आत्म बल के नए विश्वास की डोर हो तुम। अपनी आक्षेप अवहेलना को न सहो,न दमन करो अपनी इच्छाओं का अब तुम। अपनी कमियों का दोष न डालो अब किसी पर , ढूंढो और दूर करो उसे तुम। समय बीत जाता है ,लौट कर नहीं आता ,शक्ति अपनी पहचानो तभी तो तुम , चौखट के बाहर आओगी ,उज्जवल रह बनाओगी ,उत्कृष्ट मंजिलों पर चलोगी। नयी राह चुनो ,स्वतंत्र उड़ान भरो ,देखो सामने ही तो दुनिया नई है मिलेगी।


अपनी शक्ति पहचानो
तुम्हें स्वयं अपना रास्ता बनाना होगा.
क्यों तुम लड़ती रहीं , जूझती रहीं ,चाहती रहीं ,बदलना मानसिकता औरों की।
क्या फर्क है  तुममें और उनमें मत जूझो न लड़ो ,न अपना समय बर्बाद करो।
न बदलो किसी की मानसिकता ,उनकी धारणा  ,हाँ बदलो अपनी वैचारिकता।
बदलो अपने को शिक्षा से ,चिंतन मनन से ,कवच आत्म निर्भरता के स्वबल से।
नारी होने के अहसास से ,कमजोर नहीं ,अधूरी नहीं प्रचंड शक्ति बनी रहो तुम.
सम्पूर्णता पाओ अपने आत्म मंथन से,आत्म बल के नए विश्वास की डोर हो तुम।
अपनी आक्षेप अवहेलना को न सहो,न दमन करो अपनी इच्छाओं का अब तुम।
अपनी कमियों का दोष न डालो अब किसी पर , ढूंढो और दूर करो उसे तुम।
समय बीत जाता है ,लौट कर नहीं आता ,शक्ति अपनी पहचानो तभी तो तुम ,
चौखट के बाहर आओगी ,उज्जवल रह बनाओगी ,उत्कृष्ट मंजिलों पर चलोगी।
नयी राह चुनो ,स्वतंत्र उड़ान भरो ,देखो सामने ही तो दुनिया नई है मिलेगी।

Saturday, October 13, 2012

*जीवन के कुछ अनमोल पल *


निर्मित करो नये सपने*


क्षमा करुणा ममता की हो तुम, उज्जवल प्रतिमूर्ति। 

आस्था नेह विश्वास कर्तव्य की, दयालु प्रतिक्रति। 1

सौम्यता सौहाद्रता शीलता,बटोरी सम्पूर्ण मानवता।

अहंकार हो मन में  तो त्यागो, ले आओ विनम्रता। 

शक्ति-बुद्धि अपनी, कला और हुनर सब अपने।

 समझो स्व को,हटा दुराग्रह, निर्मित हों नित सपने।

डगर जिंदगी की कभी होती आसां, कभी दुष्कर।

हौसलों-आत्मशक्ति से पथ मिले हो विश्वास निखर। 


सहज निष्ठा सेआत्म-विश्वास हो


नहीं सोचो कभी सपने, हमारे पूरे क्यों नहीं होते।

अविचल हौसला रखें, इरादे सभी सदा पूरे होते। 

जीवन में सतत उत्तम, आचरण कार्य करते रहें ,

ध्येय लक्षित समक्ष ही, सहज सुबोध हैं मिलते। ।

भरोसा रखना अपनी उमंगों आकांक्षाओ पर। 

मंजिल होती सम्मुख, विचरता मन अनिश्चितता पर।

ढूंढता फिरता मृग,अपनी दुर्लभ कस्तूरी को।

अदृश्य रहती हैं स्व मंजिलें,

आल्हादित करने तत्पर।

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23 कला मर्मज्ञ साहित्यकारों को समर्पित*


हर समर्पित कलाजीवन की कला है।

कथन सत्य है जिंदगी, जीना भी एक कला है।

हम सभी इंसानों में, अबूझा कलाकार जन्म से पला है। 

स्वअदृश्य अजन्मी अपूर्व कला पहचानना होगा। 

सूरज सा तेज पाने ,सत यज्ञ संकल्पित करना होगा। 

कांटो के रास्तों पर चलकर, सफलता मिलती है।

कडकती धूप में चट्टानों सी तपन, झेलनी पड़ती है। 

सफल होने दुष्कर पथ पर, संघर्ष करना होता है। 

मंजिल पाने को अग्नि सा, प्रज्वलित होना पड़ता है। 

कलापूरित साहित्यकार कलाकार सपना साकार करते हैं।


विनम्रता बना आभूषण,आगे बढ़ते रहते हैं। 

भावना का निर्मल प्रवाह  कला को उभारता है।

सौम्य शालीन सदव्यवहार बड़प्पन, आगे बढ़ाता है।

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25  *मेरा आंगन*

हम अपने स्नेही माता-पिता द्वारा प्रदत्त संस्कार 

आचार विचार को ग्रहण करके जीवन में उत्कृष्ट सुख संपन्नता अपूर्व सुख पाते हैं।

संतान के प्रति उनकी समर्पित निष्ठा से उऋण नहीं हो सकते।

उनके लिए *सादर समर्पित* हैं मेरी ये पंक्तियां।


अभी उसदिन माँ से मिली जब मैं,स्नेही आंखों ने किया स्वागत मेरा।

सशक्त  वटवृक्ष थे स्नेही पिता मेरे, कुछ शिथिलता ने डाल दिया डेरा।

खुली किताब सा ही तो बना रहा, मेरा प्यारा बचपन,उनका सहारा।

थी बेटी दूसरी उनके आंगन आई,प्रफुल्लित पिता ने खुशियां मनाईं। 

माँ भी मुझको देख कर यूँ बोलीं, बिट्टो ने आकर भरदी मेरी झोली।

मांपिताकी स्निग्धतासे खिला जीवन,मनभावन लगता मेरा घर आंगन।

दिए बिटिया को अधिकार सारे, अभिन्न स्नेह से किये अपने वादे पूरे।

खेली-बढ़ी-पढ़ीबाबुल की गलियों में,रहती, उनकेअब हंसी सपनों में। 

जिस जमीनपर अब मैं खड़ी हुई हूँ, नित नया क्षितिज छूती जा रही हूं ।

उनसे जीवन में जो चाहा वो पाया,नित नई कल्पनाएं सजाये जारही हूं। 

मन के कोने में एक आश्वस्ति भी है,स्नेहाशीष अब भी पाते जा रही हूं।

हर खुशी गम में उनके साहस से,अपने हर कदमपर मुस्कुरा रही हूं ।  

अपनामन उनके *आंगन*रहने तक नहीं  उलीच पाई थी , हाँ कभी मैं।

कैसे अपूर्व स्नेही बेटी  होकर भी,अनुग्रह उनका कभी न कर पाई मैं 

कैसे खो गए वो सूंदर पल छिन,जब मेरा था सारा, हर दिन अपना।

माँ के आंचल की भीनी सी खुशबू,पिता के लाडों का वो  प्यारा सपना।

हो तो नहीं सकती ,कभी मैं उऋण,चाहतीहूँ थोड़ा सा सुख उनको देना।

सदाकरूँ वरिष्ठ शिखर चरणों का सत्कार,पाऊँ स्वर्ग का छोटा सा कोना।


*create new dreams*


You are a shining example of forgiveness, compassion and love. Aastha neh trust duty of duty, kind response.

Gentleness, Compassion, Modesty, Gathered all humanity.

 If you have ego, give up your mind, bring humility!

Power and intellect are yours, your art and your skills.

Understand yourself, remove prejudice, create eternal dreams.

Sometimes the hope of life is sometimes difficult. 

sometimes the path is found through courage and self-power, faith shines through.

be self-confident with ease

Don't ever think why our dreams are not fulfilled

Keep doing good, conduct work continuously in life, the goal is in front of the target, it is easily understandable. ,

Have faith in your hopes and aspirations. The destination is in front of you, the mind wanders on uncertainty.

The deer wanders in search of its rare musk. Self-stories remain invisible, ready to enjoy.

,

                                                                                 

23 Art dedicated to penetrating literaturers*


Every dedicated art is an art of life.

The statement is true life, living is also an art.

In all of us human beings, the Abujha(unknown) artist has been brought up by birth.

Self-invisible unborn, unique art has to be recognized.

To get as bright as the sun, one has to resolve to perform a Sat Yagya.

By walking on the path of thorns, success comes. 

In the scorching sun, one has to bear the heat of the rocks.

On the difficult path to be successful, one has to struggle. 

To reachthe destination, it has to be ignited like a fire.

Artists with artistic talents make their dreams come true. Humility made ornaments, keep moving forward.

The pure flow of emotion stirs up art. Gentle courteous good manners nobility, advances.

,

25 * my courtyard *

We are the rites given to us by our loving parents.

By adopting ethics, one attains excellent happiness, prosperity and extraordinary satisfaction in life.

Their devoted loyalty to their children cannot be undone.

These lines of mine are dedicated to them *regardly*.


Just that day when I met my mother, Her affectionate eyes welcomed me.

Like Strong banyan tree, my loving father, some laxity put the camp.

It remained like an open book, my dear childhood,his support.

The second daughter came to their courtyard, the cheerful father celebrated.

Seeing me, mother also said like this, Bitto came and filled my home.

Life fed by mother's aliphatic, my home courtyard looks pleasing.

All the rights given to the daughter, fulfilled the promises made with integral affection.

Played and studied in the streets of Babylon, lived, laughed in their dreams now.

The land on which I am standing now is touching new horizons.

I got whatever I wanted in life from them, I am constantly decorating new imaginations.

There is also a reassurance in the corner of my mind, 

I am still finding affection.

In every happiness and sorrow, by his courage, I am smiling at my every step.

I could not get rid of my mind till "their *Home* stay, yes sometimes I.

How in spite of being a loving daughter, I could never do her grace

How lost those beautiful moments were snatched away, when all was mine, every day mys.

The sweet fragrance of mother's lap, the sweet dreams of father's lads.

If it is not possible, sometimes I want to repay them, I want to give them some happiness.

Salutations to the senior peak feet, I will find a small corner of heaven.


*MY GOLDEN LIFE * - *स्वर्णिम समय के कुछ यादगार पल*.

*LIVE*- TO LIVE IN THE HEART OF THOSE YOU LEAVE BEHIND IS NOT TO DIE.

जब कभी बीती जिंदगी के सुंदर पलों पर हम अपनी दृष्टि  डालते हैं तो मन एक अलग ही दुनिया में बहकर चला जाता है. हाँ सारा समय एक सा नहीं होता. हमारी जिंदगी में कभी कुछ समय वो भी होता  है जो सुखद नहीं रहा होता है ,वो भी उमड़-घुमढ़ कर हमें अपनी ओर खींच लेता है. फिर भी हम याद करते रहते हैं वे अद्भुत पल. क्यों क्योंकि यही तो जीवन है , मानव जीवन.
सारे जीवित प्राणियों का सर्वश्रेष्ट बुद्धिमान स्वरुप. जब कभी कैसा भी अकेलापन लगे या मन किसी भी कारण से उदास हो तो वहीँ चले जाओ , तो सब भूलकर मन कैसे एक नई उमंगों से भर उठता है.
 LIFE-
LOOK TO THIS DAY FOR THIS IS LIFE .
THE VERY LIFE OF LIFE.
FOR YESTERDAY IS ALREADY A *DREAM *.
AND TOMORROW IS ONLY A *VISION *.
BUT TODAY WELL LIVED.
MAKES EVERY YESTERDAY-A DREAM.
AND EVERY TOMORROW IS VISION OF HOPE.
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दूसरी बेटी-
आज माँ बनी हूँ बेटी कीअहसास कर रही हूँ उसकी ममता .
उसके पिता का भी निर्झर अविरल सा है प्यार का एक सोता.
नए जमानेकी सोनोग्राफी  ने परेशां कर  रखा है  मुझको .
सीप में बंद है एक  नन्ही *रत्नापता चल गया है मुझको.
बेटी है वो भी दूसरी ,क्या जीवन उसका मिटाना  होगा.
अपने ही आंशियाँ की नन्ही दीपिका को बुझाना   होगा.
कैसा बना है ये चलन,उलझन ,मजबूरी बनती  है  पहेली.
माँ की देहा ,पिता  की नेहा ,फिर भी बढती है चलाचली.
सोचकर हूँ चिंतित ग़र ,ये परिक्षण पहले कहीं हुआ होता
होता मेरा ये  जीवन , मेरा  अस्तित्व  कहीं होता.
मेरा बचपन रह-रहकर जला रहा है, डरा रहा है मुझको.
खून के  ये  विषैले  आंसू  कैसे पिला रहा है मुझको.
ग़र  ये  सब  कुछ  चलन  पहले  भी चल गया होता.
मै  होती , ये आंशियाँ , कही  मेरा निशां होता.
     *हाँ मै मेरे माँ -पापा की दूसरी बेटी हूँ.*
विशेष-
वर्तमान समाज की ये  विसंगति से जब कभी मन दुखी हुआ तो ये चंद पंक्तियाँ अनायास लिख गयी थी.
उसके बाद जब मेरे माँ-पापा से मेरी मुलाकात हुई , सामान्य वातावरण में मन आने पर
मैने अपनी लिखी कुछ कविताओं के साथ इसे भी पढ़कर उनको सुना दिया
ओह ! आश्चर्य ! मेरी माँ के आँखों से निःशब्द अश्रु बह चले ,जो बहुत मुश्किल से रुके . 
पापाजी की ऑंखें भी अनायास भीग गयीं ,
जिन्हें उन्होंने मुझसे छिपाना  चाहा पर उनकी *दूसरी बेटी* ने बहने दिए.
हम पांच भाई बहनों में मैं बीच की बिटिया हूँ .
‘’बड़ीदी - बड़े भैया - मैं - छोटे भैया - छोटी बहना”.                
आज की तारीख़ तक उनके  दिए  स्नेह संस्कारों से हम सब प्रेम से बंधे जुड़े हैं.
मेरे बचपन से आज तक की कई ऐसी मधुर बातें-यादें हैं ,जिन्हें समय-समय पर लेखन-बद्ध करुँगी .
कुछ वे पल भी होते हैं जिन्हें जब यादकर मन विचलित हो तो-------भूलना श्रेयस्कर भी है.   
हाँ मेरे बड़े भाई किन्ही कारणवश बीच में ही अस्वस्थता के कारण हमारा साथ छोड़ गए.
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*HOW ARE YOU KNOWN*

WE LIVE IN DEEDS ,NOT IN YEARS.
IN THOUGHTS & NOT IN  BREATHS.
IN FEELINGS , NOT IN FIGURES IN DIALS.
WE SHOULD COUNT  TIME  BY THROBS .
WE MUST LIVE IN , WHO THINKS MOST.
FEELS THE NOBLEST ,ACTS THE BEST.

“AS SURE AS DAY COMES AFTER NIGHT ,SO EVERY DEED HAS ITS REWARD” .